December 9, 2024

Himalaya Day 2023: हिमालय क्षेत्र की सेहत बिगाड़ रहा प्लास्टिक का कचरा, सरकार और कोर्ट की सख्ती का असर नहीं

पहाड़ों पर इसी गति से प्लास्टिक कचरा बढ़ता रहा तो इससे संवेदनशील हिमालयी क्षेत्र के पर्यावरण, जंगल और पानी के स्रोतों पर संकट और गहरा जाएगा। प्रसिद्ध पर्यावरणविद चंडी प्रसाद भट्ट का कहना है कि  बड़े पैमाने पर प्लास्टिक हिमालय की तलहटी में पहुंच रहा जो बड़ी चिंता का विषय है।

Himalaya Day 2023 Plastic waste spoiling the health of the Himalayan region

हिमालयी क्षेत्र की तलहटी तक पहुंच चुका प्लास्टिक का कचरा बहुत तेजी से इसकी सेहत को बिगाड़ रहा है। उत्तराखंड में आम लोगों के अलावा धार्मिक तीर्थाटन, पर्यटक और शौकिया ट्रैकर प्रतिवर्ष हजारों टन कचरा हिमालय क्षेत्र में छोड़कर जा रहे हैं। सरकार और अदालतों के सख्त रुख के बावजूद शहरों से लेकर उच्च हिमालयी क्षेत्रों तक प्लास्टिक के अंबार कम नहीं हो रहे हैं।

आने वाले दिनों में यह समस्या और विकराल रूप ले सकती है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के एक सर्वे के मुताबिक, देश के 60 बड़े शहरों में हुए सर्वे में यह बात सामने आई है कि पूरे देश में प्रतिदिन 25 हजार 940 टन प्लास्टिक कचरा निकलता है। सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक, देश में हर साल प्रति व्यक्ति 9.7 किग्रा प्लास्टिक का इस्तेमाल करता है, जो बाद में कचरे के रूप में तब्दील होता है।

उत्तराखंड में रोजाना खतरनाक प्लास्टिक कचरे की मात्रा बढ़ती जा रही है। वर्ष 2041 तक यह करीब 457.63 टन प्रतिदिन के खतरनाक स्तर पर पहुंच जाएगा। पिछले दिनों उत्तराखंड पर्यावरण और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (पीसीबी) के सर्वे में सामने आई यह तस्वीर चौंकाने वाली आई है। पहाड़ों पर इसी गति से प्लास्टिक कचरा बढ़ता रहा तो इससे संवेदनशील हिमालयी क्षेत्र के पर्यावरण, जंगल और पानी के स्रोतों पर संकट और गहरा जाएगा।

हिमालय पर प्लास्टिक के पहाड़ नहीं बनने दिए जाएं

राज्य सरकार ने पॉलिथीन पर पाबंदी लगाई है। इसके बावजूद पॉलिथीन और प्लास्टिक का लगातार उपयोग हो रहा है। खूबसूरत उत्तराखंड और यहां के हिमालयी क्षेत्र का पर्यावरण बचाने के लिए जरूरी है कि हिमालय पर प्लास्टिक के पहाड़ नहीं बनने दिए जाएं। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के सदस्य सचिव सुशांत पटनायक के मुताबिक, इस दिशा में पीसीबी की ओर से लगातार जागरूकता अभियान चलाए जा रहे हैं, ताकि राज्य में आने वाले पर्यटकों को प्लास्टिक के कचरे से होने वाले नुकसान के बारे में अवगत कराया जा सके।

प्लास्टिक का कचरा हिमालयी पारिस्थितिकी तंत्र और जैव विविधता को नुकसान पहुंचा रहा है। हिमालय के वन क्षेत्रों में प्लास्टिक के कचरे के अंबार लगे हैं। निकायों के स्तर पर इनकी निगरानी नहीं हो रही है। कचरे के निस्तारण की समुचित व्यवस्था नहीं होने से स्थानीय लोगों के साथ छोटे-बड़े होटल-ढाबे वाले भी अपना कचरा हिमालय क्षेत्र में बनी खाइयों और जंगलों में डंप कर रहे हैं। यदि हिमालय क्षेत्र को संरक्षित नहीं किया गया तो समूचा बहाव क्षेत्र प्रभावित होगा। 70 करोड़ से ज्यादा लोग प्रभावित होंगे। – अनूप नौटियाल, अध्यक्ष एसडीसी फाउंडेशन

प्लास्टिक हिमालय की तलहटी में पहुंचना चिंता का विषय

पिछले कुछ सालों में हिमालय क्षेत्र में मानवीय गतिविधियां बढ़ी हैं। सीमांत चमोली जनपद के उच्च हिमालय क्षेत्रों में बड़ी मात्रा में कीड़ा जड़ी का दोहन होता है। ग्रामीण इस जड़ी की खोज में बुग्यालों को पीछे छोड़कर हिमालय की तलहटी तक पहुंच रहे हैं। इसके साथ ही बड़े पैमाने पर प्लास्टिक भी हिमालय की तलहटी में पहुंच रहा जो बड़ी चिंता का विषय है। सरकार को इस दिशा में ठोस कार्ययोजना बनानी होगी। स्थानीय लोगों के साथ बाहर से आने वाले लोगाें में भी चेतना बढ़ानी होगी। – चंडी प्रसाद भट्ट, प्रसिद्ध पर्यावरणविद

औली में बुग्याल बचाओ अभियान कल से

सीपीबी पर्यावरण विकास केंद्र की ओर से नौ सितंबर से औली से बुग्याल बचाओ अभियान की शुरुआत की जाएगी। केंद्र के प्रबंध न्यासी ओम प्रकाश भट्ट ने बताया, अभियान 11 सितंबर तक आयोजित होगा। अभियान से जुड़े पर्यावरण कार्यकर्ता औली से गौरसों, कुंवारीपास, डेरीसेरा बुग्याल होते हुए तपोवन पहुंचेंगे। अभियान में नंदा देवी राष्ट्रीय पार्क, पीजी कॉलेज गोपेश्वर, नगर पालिका जोशीमठ और आईटीबीपी के कार्यकर्ता शामिल होंगे। अभियान के दौरान बुग्याल क्षेत्रों में प्लास्टिक उन्मूलन के साथ ही आबादी क्षेत्रों में पर्यावरण संरक्षण गोष्ठी आयोजित की जाएगी। टीम बुग्यालों का अध्ययन भी करेगी।