November 21, 2025

Dehradun: वन उपज का मिला अधिकार, जंगल भी हुए गुलजार, वन पंचायतों के लिए वरदान साबित हो सकता है गोंडवाना मॉडल

0
उत्तराखंड में वन पंचायतों के लिए गोंडवाना मॉडल वरदान साबित हो सकता है। गोंडवाना यूनिवर्सिटी के प्रयास से जनजातीय ग्रामीणों की जिंदगी बदली है। सफलता की यह कहानी है महाराष्ट्र के गडचिरोली जिले की 1400 से अधिक ग्राम पंचायतों की। इन्होंने वनों के साथ दोस्ती की नई इबारत लिखी है, जो पूरे देश के लिए एक मिसाल बनकर सामने आई है।
जंगल

जिन जंगलों का प्रयोग कभी नक्सली छिपने के लिए करते थे, आज वही जंगल जनजाति समाज के ग्रामीणों के लिए आय का जरिया बने हैं। वे इन जंगलों की देखभाल करते हैं और इनसे हासिल होने वाली उपज से अपनी आजीविका चलाते हैं। ये देश में अपनी तरह का पहला मॉडल है।

सफलता की यह कहानी है महाराष्ट्र के गडचिरोली जिले की 1400 से अधिक ग्राम पंचायतों की। इन्होंने वनों के साथ दोस्ती की नई इबारत लिखी है, जो पूरे देश के लिए एक मिसाल बनकर सामने आई है। उत्तराखंड सरकार इस पर ध्यान दे तो महाराष्ट्र की गोंडवाना विद्यापीठ यूनविर्सिटी का यह प्रयोग प्रदेश में वन पंचायतों के लिए वरदान साबित हो सकता है।

दून यूनिवर्सिटी में शनिवार को आयोजित एक सेमिनार में यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर डॉ. प्रशांत श्रीधर के इस प्रस्तुतीकरण ने सबका ध्यान खींचा। उन्होंने बताया कि गडचिरोली जिले का 76 प्रतिशत क्षेत्र वनों के अधीन है। इनमें से 49 गौण वन उत्पाद (वन उपज) प्राप्त होते हैं। 

कैसे हुआ ये प्रयोग 
वन्य उत्पादों को आदिवासी लोगों की आजीविका से जोड़ने के लिए एक योजना तैयार कर केंद्र सरकार को भेजी गई। वन मंत्रालय ने इस योजना के लिए तीन करोड़ रुपये की आर्थिक मदद के साथ 1809 हेक्टेयर वन क्षेत्र चिन्हित किया। विद्यापीठ ने जनजातियों का समूह बनाकर व्यावसायिक गतिविधियों से जोड़ा। इसके बाद जिला प्रशासन की मदद से इनकी ट्रेनिंग शुरू हुई।

ग्रामीणों को एक सप्ताह विश्वविद्यालय और दो सप्ताह जंगल में प्रशिक्षण दिया जाता है। इसके बाद गांव-गांव में गौण वन उत्पाद समितियों का गठन किया गया। आज यह जनजातीय लोग तेंदु पत्ता, महुवा, बिहाड़ा, गोंद, ब्लैक बेरी, शहद जैसी वनोपज को बेचकर इससे अच्छी खासी आमदनी प्राप्त करते हैं।

अब तक 1478 ग्राम पंचायतों के हजारों लोगों को इस योजना जोड़ा जा चुका है। समितियों का बकायदा जिला प्रशासन के साथ एमओयू किया गया है। जिला प्रशासन इन उत्पादों को लेकर आगे बाजार में बेचता है। इसके लिए बाकायदा कुलपति की अध्यक्षता में गौण वन उत्पाद अध्ययन बोर्ड का गठन किया गया है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *