November 21, 2025

Nainital High Court: कर्मियों को बर्खास्त करने के मामले में विधानसभा सचिवालय से जवाब तलब, 31 मार्च को सुनवाई

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विधानसभा सचिवालय में 396 पदों पर बैक डोर नियुक्तियां 2001 से 2015 के बीच हुई है जिनको नियमित किया जा चुका है। याचिकाओं में कहा गया था कि 2014 तक तदर्थ नियुक्त कर्मचारियों को चार वर्ष से कम की सेवा में नियमित नियुक्ति दे दी गई लेकिन उन्हें छह वर्ष के बाद भी नियमित नहीं किया और अब उन्हें हटा दिया गया।
सांकेतिक तस्वीर।

हाईकोर्ट ने विधानसभा सचिवालय से बर्खास्त कर्मचारियों के मामले की सुनवाई के बाद याचिकाकर्ताओं के संशोधित प्रार्थनापत्र को स्वीकार करते हुए विधानसभा सचिवालय को इस पर दो सप्ताह के भीतर अतिरिक्त जवाब पेश करने के लिए कहा है। मामले की अगली सुनवाई 31 मार्च को होगी।

निष्काषित कर्मचारियों ने संशोधित प्रार्थनापत्र के माध्यम से विधानसभा की जांच रिपोर्ट को चुनौती दी थी। इसमें कहा गया कि 2001 से 2015 तक की नियुक्तियां भी अवैध हैं लेकिन 2016 से 2021 तक हुईं नियुक्तियों की ही जांच की गई, जो अवैध पाई गई। इसी आधार पर उन्हें निष्काषित किया गया है। याचिकाकर्ताओं का कहना था कि जांच के बाद उन्हें सुनवाई का मौका नहीं दिया गया। उनके साथ भेदभाव किया गया है। यह प्राकृतिक न्याय के विरुद्ध है।

वरिष्ठ न्यायमूर्ति मनोज कुमार तिवारी की एकलपीठ के समक्ष मामले की सुनवाई हुई। मामले के अनुसार बर्खास्तगी के आदेश को बबिता भंडारी, भूपेंद्र सिंह बिष्ट, कुलदीप सिंह व 102 अन्य ने एकलपीठ के समक्ष याचिका दायर कर कहा था कि विधान सभा अध्यक्ष की ओर से लोकहित को देखते हुए उनकी सेवाएं 27, 28 व 29 सितंबर 2022 को समाप्त कर दी थी।

बर्खास्तगी आदेश में किस आधार पर
बर्खास्तगी आदेश में उन्हें किस आधार पर, किस कारण हटाया गया कहीं इसका उल्लेख नहीं किया गया और ना ही उन्हें सुना गया, जबकि उनके द्वारा सचिवालय में नियमित कर्मचारियों की भांति कार्य किया गया है। एक साथ इतने कर्मचारियों को बर्खास्त करना लोकहित में नहीं है। यह आदेश विधि विरुद्ध है।

विधानसभा सचिवालय में 396 पदों पर बैक डोर नियुक्तियां 2001 से 2015 के बीच हुई है जिनको नियमित किया जा चुका है। याचिकाओं में कहा गया था कि 2014 तक तदर्थ नियुक्त कर्मचारियों को चार वर्ष से कम की सेवा में नियमित नियुक्ति दे दी गई लेकिन उन्हें छह वर्ष के बाद भी नियमित नहीं किया और अब उन्हें हटा दिया गया। उनकी नियुक्ति को 2018 में जनहित याचिका दायर कर चुनौती दी गई थी जिसमें कोर्ट ने उनके हित में आदेश दिया था जबकि नियमानुसार छह माह की सेवा के बाद उन्हें नियमित किया जाना था।

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