October 6, 2025

उत्तराखंड में चुनावी संग्राम: संघर्ष के दौर से गुजर रही कांग्रेस को इस बार संजीवनी की दरकार

0

Uttarakhand Assembly Election 2022: वर्ष 2017 के चुनाव में कांग्रेस 11 सीटों पर सिमटकर अपने अब तक के सबसे बुरे दौर से गुजर रही है।

कांग्रेस

विस्तार
नौ नवंबर 2000 को राज्य गठन के बाद उत्तराखंड में अंतरिम विधानसभा के 30 सदस्यों में से 17 विधायक भाजपा के थे, तो सरकार बनाने का मौका भी भाजपा को ही मिला। इसके बाद राज्य में वर्ष 2002 में पहली बार विधानसभा चुनाव हुआ तो अप्रत्याशित ढंग से राज्य की जनता ने सत्ता की चाबी कांग्रेस को सौंप दी। 36 सीटें जीतकर कांग्रेस ने बहुमत का आंकड़ा छुआ और एनडी तिवारी को पहली निर्वाचित सरकार में मुख्यमंत्री बनने का मौका मिला। इसके बाद से लगातार भाजपा और कांग्रेस में सत्ता परिवर्तन होता रहा है। लेकिन वर्ष 2017 के चुनाव में कांग्रेस 11 सीटों पर सिमटकर अपने अब तक के सबसे बुरे दौर से गुजर रही है। सत्ता परिवर्तन के इस खेल में बारी इस बार कांग्रेस की हो सकती है, लेकिन इस जीत के लिए उसे करिश्माई संजीवनी की दरकार है।

केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार रहते उत्तराखंड राज्य का गठन हुआ था। ऐसे में जब वर्ष 2002 में पहली बार राज्य में विधानसभा चुनाव हुए तो भाजपा इस बात को लेकर आश्वस्त थी कि उसका सत्ता में आना तय है। लेकिन हुआ इसके उलट। राज्य की जनता ने कांग्रेस को मौका दिया। उस वक्त उत्तराखंड कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष हरीश रावत के नेतृत्व में चुनाव लड़ा गया था। लेकिन जब बारी मुख्यमंत्री बनने की आई तो बाजी एनडी तिवारी मार ले गए। सबकुछ करने के बाद भी हरीश रावत खाली हाथ रह गए। इसके बाद एनडी ने पूरे पांच साल सरकार चलाई, लेकिन मुख्यमंत्री पद को लेकर दोनों नेताओं के बीच खड़ी हुई दीवार कभी गिर नहीं पाई। पूरे पांच साल दोनों नेता एक-दूसरे की खिंचाई करने से बाज नहीं आए। यहीं से पार्टी में हरीश रावत के रूप में एक ध्रुव खड़ा हुआ तो उधर, एनडी की सरपरस्ती में इंदिरा हृदेयश मजबूत हो रही थीं।

इसके बाद वर्ष 2007 के विस चुनाव में भाजपा ने 34 सीटें जीतकर जोड़तोड़ की सरकार बनाई तो कांग्रेस 21 सीटों पर सिमटकर रह गई। वर्ष 2012 में हुए विस चुनाव में दोनों पार्टियों के बीच कांटे की टक्कर हुई। कांग्रेस 32 तो भाजपा 31 सीट लेकर आई। कांग्रेस ने बसपा और निर्दलियों के सहयोग से सरकार बनाई। लेकिन इस बार भी हरीश को मौका नहीं मिला और मुख्यमंत्री की कुर्सी दिल्ली हाईकमान ने विजय बहुगुणा को सौंप दी। लेकिन वर्ष 2013 की आपदा के बाद राज्य की राजनीति में एक बार फिर उथल-पुथल हुई और इस बार मुख्यमंत्री की कुर्सी आखिरकार हरीश रावत को मिल गई। वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में मोदी लहर में जहां भाजपा ने 57 सीटें जीतकर प्रचंड बहुमत की सरकार बनाई, वहीं कांग्रेस 11 सीटों पर सिमटकर रह गई। जो उसका अब तक का सबसे खराब प्रदर्शन था।
They are either end-products of generic prescription viagra our cells’ metabolism or these toxins are created by microorganisms, and parasites inside the human being. It has been popularly used in medicine since ancient times wherein, they are not able to perform well in the bedroom, it is always important that you get the opinion of qualified medical practitioners before taking them. canadian viagra samples There are many experts urologists http://www.icks.org/html/02_executive.php order viagra available these days. So if you’re taking hormone-related treatments or viagra pills from canada drugs of any kind, you may want to consult with a medical practitioner.

कांग्रेस का इतिहास रही है पार्टी के भीतर गुटबाजी 
पहली बार वर्ष 2002 में कांग्रेस जब सत्ता में आई तो यह सरकार पार्टी के भीतर एनडी और रावत के बीच रोज होने वाले झगड़ों के लिए जानी गई। इसी सरकार में हरीश रावत कांग्रेस में एक मजबूत ध्रुव बनकर उभरे। इसके बाद तिवारी गए तो उनके समर्थकों की कमान इंदिरा हृदयेश ने संभाल ली। तब इंदिरा पार्टी में दूसरा ध्रुव बनकर उभरीं। इंदिरा के बाद अब उनके समर्थकों की कमान प्रीतम सिंह ने संभाल रखी है। जो फिलहाल पार्टी में हरीश के बाद दूसरे मजबूत गुट के रूप में सक्रिय हैं।

पार्टी के पास इतिहास दोहराने का है मौका
राज्य की राजनीति में सत्ता हस्तांतरण के इतिहास के बीच कांग्रेस के पास वापसी का सुनहरा मौका भी है। पार्टी भले ही अपने बुरे वक्त से गुजर रही है, लेकिन सत्ता में वापसी को लेकर आश्वस्त भी है। पार्टी नेताओं की मानें तो बीते चुनाव में राज्य ही नहीं पूरा देश मोदी उन्माद में बहक गया था, लेकिन इस बार ऐसा नहीं होगा। पार्टी के शीर्ष नेताओं का मानना है कि इस बार उसके पास रोजगार, महंगाई, भ्रष्टाचार जैसे तमाम मुद्दे हैं, लेकिन सत्ताधारी भाजपा के पास मुद्दों का अभाव है। ऐसे में बार-बार मोदीनाम का सहारा उसकी नैया को पार नहीं लगा सकता।

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *